पूर्णिमा (Uposath Day)
इस पूर्णिमा के दिन ये विशेष घटनाएँ घटित हुई थी
- भगवान बुद्ध का श्रीलंका में दूसरी बार आगमन बुद्धत्व के 5 वर्ष पश्चात्, चूलोदर एवं महोदर नामक दिव्य नागों के मध्य मणि से निर्मित सिंहासन के कलह में युद्ध को शांत करने हेतु
कृष्ण अष्टमी (Uposath Day)
भगवान बुद्ध के समय में उनके मार्ग पर चलने वाले अष्टमी के दिन अष्टांग उपोसथ शील धारण करते थे एवं अपने जीवन में अप्रमाण पुण्य जमा करते थे। यह उपोसथ शील अत्यंत उत्तम एवं निर्मल है। इसे पालन करने से मन में प्रसन्नता जागती है एवं शोक दूर होता है। अरहन्त मुनि लोगों का अनुसरण करते हुए यह उपोसथ शील पालन किया जाता है।
अमावस्या (Uposath Day)
भगवान बुद्ध के समय में उनके मार्ग पर चलने वाले अमावस्या के दिन अष्टांग उपोसथ शील धारण करते थे एवं अपने जीवन में अप्रमाण पुण्य जमा करते थे। यह उपोसथ शील अत्यंत उत्तम एवं निर्मल है। इसे पालन करने से मन में प्रसन्नता जागती है एवं शोक दूर होता है। अरहन्त मुनि लोगों का अनुसरण करते हुए यह उपोसथ शील पालन किया जाता है।
शुक्ल अष्टमी (Uposath Day)
भगवान बुद्ध के समय में उनके मार्ग पर चलने वाले अष्टमी के दिन अष्टांग उपोसथ शील धारण करते थे एवं अपने जीवन में अप्रमाण पुण्य जमा करते थे। यह उपोसथ शील अत्यंत उत्तम एवं निर्मल है। इसे पालन करने से मन में प्रसन्नता जागती है एवं शोक दूर होता है। अरहन्त मुनि लोगों का अनुसरण करते हुए यह उपोसथ शील पालन किया जाता है।
पूर्णिमा (Uposath Day)
इस पूर्णिमा के दिन ये विशेष घटनाएँ घटित हुई थी
- सिद्धार्थ बोधिसत्व का मनुष्य लोक में आगमन (जन्म)
- सिद्धार्थ बोधिसत्व की बुद्धत्व प्राप्ति (सम्बुद्धत्व)
- भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण
- बुद्धत्व के पश्चात् कपिलवस्तु में आगमन एवं शाक्यों के अहंकार को खंडित करने हेतु ‘यमक महाप्रातिहार्य’ नामक अद्भुत सिद्धि का प्रदर्शन
- बुद्धत्व के 8 वर्ष पश्चात् तीसरी बार श्रीलंका में आगमन
- श्रीलंका के श्रीपाद पर्वत के शीखर पर भगवान बुद्ध के द्वारा नीलमणि में श्रीचरण के पदचिन्ह को स्थापित करना
- भगवान बुद्ध का अग्र सेवक अरहन्त आनन्द भन्ते जी का परिनिर्वाण
- भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के दिन ही राजकुमार विजय का श्रीलंका द्विप में आगमन एवं सिंहली जाति की शुरुआत
कृष्ण अष्टमी (Uposath Day)
भगवान बुद्ध के समय में उनके मार्ग पर चलने वाले अष्टमी के दिन अष्टांग उपोसथ शील धारण करते थे एवं अपने जीवन में अप्रमाण पुण्य जमा करते थे। यह उपोसथ शील अत्यंत उत्तम एवं निर्मल है। इसे पालन करने से मन में प्रसन्नता जागती है एवं शोक दूर होता है। अरहन्त मुनि लोगों का अनुसरण करते हुए यह उपोसथ शील पालन किया जाता है।
अमावस्या (Uposath Day)
भगवान बुद्ध के समय में उनके मार्ग पर चलने वाले अमावस्या के दिन अष्टांग उपोसथ शील धारण करते थे एवं अपने जीवन में अप्रमाण पुण्य जमा करते थे। यह उपोसथ शील अत्यंत उत्तम एवं निर्मल है। इसे पालन करने से मन में प्रसन्नता जागती है एवं शोक दूर होता है। अरहन्त मुनि लोगों का अनुसरण करते हुए यह उपोसथ शील पालन किया जाता है।
शुक्ल अष्टमी (Uposath Day)
भगवान बुद्ध के समय में उनके मार्ग पर चलने वाले अष्टमी के दिन अष्टांग उपोसथ शील धारण करते थे एवं अपने जीवन में अप्रमाण पुण्य जमा करते थे। यह उपोसथ शील अत्यंत उत्तम एवं निर्मल है। इसे पालन करने से मन में प्रसन्नता जागती है एवं शोक दूर होता है। अरहन्त मुनि लोगों का अनुसरण करते हुए यह उपोसथ शील पालन किया जाता है।
पूर्णिमा (Uposath Day)
इस पूर्णिमा के दिन ये विशेष घटनाएँ घटित हुई थी
- श्रीलंका में भगवान बुद्ध के धर्म को स्थापित करने हेतु अरहन्त महेन्द्र भन्ते जी श्रीलंका के अनुराधपुर में मिहिन्तले स्थान पर आगमन
- श्रीलंका के राजा देवानंपियतिस्स सहित 40,000 लोगों को अरहन्त महेन्द्र भन्ते जी के द्वारा चुल्लहत्थिपदोपम सूत्र का धर्म प्रवचन करना
कृष्ण अष्टमी (Uposath Day)
भगवान बुद्ध के समय में उनके मार्ग पर चलने वाले अष्टमी के दिन अष्टांग उपोसथ शील धारण करते थे एवं अपने जीवन में अप्रमाण पुण्य जमा करते थे। यह उपोसथ शील अत्यंत उत्तम एवं निर्मल है। इसे पालन करने से मन में प्रसन्नता जागती है एवं शोक दूर होता है। अरहन्त मुनि लोगों का अनुसरण करते हुए यह उपोसथ शील पालन किया जाता है।
अमावस्या (Uposath Day)
भगवान बुद्ध के समय में उनके मार्ग पर चलने वाले अमावस्या के दिन अष्टांग उपोसथ शील धारण करते थे एवं अपने जीवन में अप्रमाण पुण्य जमा करते थे। यह उपोसथ शील अत्यंत उत्तम एवं निर्मल है। इसे पालन करने से मन में प्रसन्नता जागती है एवं शोक दूर होता है। अरहन्त मुनि लोगों का अनुसरण करते हुए यह उपोसथ शील पालन किया जाता है।
शुक्ल अष्टमी (Uposath Day)
भगवान बुद्ध के समय में उनके मार्ग पर चलने वाले अष्टमी के दिन अष्टांग उपोसथ शील धारण करते थे एवं अपने जीवन में अप्रमाण पुण्य जमा करते थे। यह उपोसथ शील अत्यंत उत्तम एवं निर्मल है। इसे पालन करने से मन में प्रसन्नता जागती है एवं शोक दूर होता है। अरहन्त मुनि लोगों का अनुसरण करते हुए यह उपोसथ शील पालन किया जाता है।