धम्मपद – यमक वर मनोपुब्बंगमा धम्मा – मनोसेट्ठा मनोमयामनसा चे पदुट्ठेन – भासति वा करोति वाततो नं दुक्खमन्वेति – चक्कंव वहतो पदं। 1. इस जीवन में सभी अकुशल के लिए मन हीं मूल होता है। मन हीं मुख्य होता है। सभी अकुशल विचार मन से हीं उत्पन्न होता है। अगर जो कोई बुरे मन से… (Read More)
धम्मपद – अप्पमाद वर्ग अप्पमादो अमतपदं – पमादो मच्चुनो पदंअप्पमत्ता न मीयन्ति – ये पमत्ता यथा मता। 1. शील, समाधी, प्रज्ञा को बढ़ाने वाला अप्रमादी व्यक्ति अमृत निर्वाण को पाता है। लेकिन काम-वासना सुख में फंसा हुआ व्यक्ति को हमेशा केवल मृत्यु हीं मिलता है। बिना देर हुये धर्म की रास्ता पर चलने वाला व्यक्ति… (Read More)
धम्मपद – चित्त वर्ग फन्दनं चपलं चित्तं – दुरक्खं दुन्निवारयंउजुं करोति मेधावी – उसुकारोव तेजनं। 1. ये मन बड़ा ही चंचल है, चपल है। इसे अपने वश में रखना बहुत हीं मुश्किल है। मन को पाप से बचाना बहुत ही कठिन है। लेकिन ज्ञानी व्यक्ति उस मन को वैसे ही सीधा करता है, जैसे तीर… (Read More)

