
धम्मपद – अप्पमाद वर्ग
अप्पमादो अमतपदं – पमादो मच्चुनो पदं
अप्पमत्ता न मीयन्ति – ये पमत्ता यथा मता।
1. शील, समाधी, प्रज्ञा को बढ़ाने वाला अप्रमादी व्यक्ति अमृत निर्वाण को पाता है। लेकिन काम-वासना सुख में फंसा हुआ व्यक्ति को हमेशा केवल मृत्यु हीं मिलता है। बिना देर हुये धर्म की रास्ता पर चलने वाला व्यक्ति अमर हो जाता है। लेकिन धर्म की रास्ता पर चलने में देर होने वाला प्रमादी व्यक्ति जीते जी मरे के समान होता है।
एवं विसेसतो ञत्वा – अप्पमादम्हि पण्डिता
अप्पमादे पमोदन्ति – अरियानं गोचरे रता।
2. अप्रमादी ज्ञानी व्यक्ति प्रमाद तथा अप्रमाद के बारे में को भलि-भांति समझता है। इसलिए वैसा लोग आर्य लोगों के उत्तम मार्ग को अपनाता है तथा अप्रमाद गुण से खुश हो जाता है।
ते झायिनो साततिका – निच्चं दळ्हपरक्कमा
फुसन्ति धीरा निब्बानं – योगक्खेमं अनुत्तरं।
3. वे ज्ञानी प्रज्ञावान व्यक्ति हमेशा ध्यान-साधना करता है। मुक्ति के लिए निरंतर असामान्य प्रयास करते हुये धर्म की रास्ता पर चलता है। इसी कारण सभी भव-सागर से पार जाकर अमृत निर्वाण को पाता है।
उट्ठानवतो सतिमतो – सुचिकम्मस्स निसम्मकारिनो
सञ्ञतस्स च धम्मजीविनो – अप्पमत्तस्स यसोभिवड्ढति।
4. जो धर्म की रास्ता पर चलने में मेहनती है, निरंतर सति-स्मृति से रहता है, परिशुद्ध क्रिया से युक्त है, ज्ञान से मनन करके काम करता है, इन्द्रियों को संयमित करके रखता है, धार्मिक ढ़ंग से जीवन बिताता है, तो ठिक वैसे हीं अप्रमादी व्यक्ति की कीर्ति-प्रशंसा बढ़ जाती है।
उट्ठानेनप्पमादेन – संयमेन दमेन च
दीपं कयिराथ मेधावी – यं ओघो नाभिकीरति।
5. ज्ञानी व्यक्ति धर्म की रास्ता पर लगातार प्रयास करते हुए अप्रमादी रहता है। अपने इन्द्रियों को अपने वश में रखता है। इन्द्रियों को दमन करता है। वह उसी के द्वारा अमृत निर्वाण नाम का द्वीप बना लेता है और राग, द्वेष मोह नाम की बाढ़ में नहीं डूबता है।
पमादमनुयुञ्जन्ति – बाला दुम्मेधिनो जना
अप्पमादञ्च मेधावी – धनं सेट्ठंव रक्खति।
6. अज्ञानी लोग काम-वासना की सुख में फंस कर धर्म की रास्ता पर चलने में देर होते रहते हंै। लेकिन ज्ञानी लोग अप्रमाद में उसी प्रकार लगे रहते हैं, जैसे कोई व्यक्ति अपने अमूल्य धन की सुरक्षा में लगे रहता है।
मा पमादमनुयुञ्जेथ – मा कामरतिसन्थवं
अप्पमत्तो हि झायन्तो – पप्पोति विपुलं सुखं।
7. धर्म की रास्ता पर चलने में विलंब मत करो। काम-वासना की सुखों में मत फंसो। काम-वासना की सुखों में मत लगे रहो। बिना देर हुये लगातार ध्यान-साधना करोगे तो महान निर्वाण सुख को पा सकता है।
पमादं अप्पमादेन – यदा नुदति पण्डितो
पञ्ञापासादमारुय्ह – असोको सोकिनिं पजं
पब्बतट्ठोव भुम्मट्ठे – धीरो बाले अवेक्खति।
8. ज्ञानी व्यक्ति अप्रमाद के जरिए प्रमाद को दूर करता है। इसके बाद वह प्रज्ञा से बने महल पर चढ़ता है। वहाँ से वह बिना शोक के, दुखी जनता को देखता है। जैसे कोई व्यक्ति पर्वत के उपर चढ़कर नीचे रहने वाले लोगों को देखता है ठिक वैसे हीं ज्ञानी व्यक्ति अज्ञानियों को देखता है।
अप्पमत्तो पमत्तेसु – सुत्तेसु बहुजागरो
अबलस्संव सीघस्सो – हित्वा याति सुमेधसो।
9. धर्म की रास्ता पर चलने में विलंब करने वाले लोगों के बीच ज्ञानी भिक्षु बिना विलंब किए धर्म की रास्ता पर चलते हैं। नींद में डूबे जनता के बीच बिना सोए ध्यान-साधना करते हैं। वो निर्वाण की ओर ठिक वैसे हीं जाते है जैसे शक्तिशाली और तेज दौड़ने वाला अश्व दुर्बल अश्व को दौड़ में हरा देता है।
अप्पमादेन मघवा – देवानं सेट्ठतं गतो
अप्पमादं पसंसन्ति – पमादो गरहितो सदा।
10. वो शक्र देवराज इन्द्र पहले मनुष्य लोक में रहते समय बिना विलंब किए पुण्य कर्म करने के कारण हीं देवलोक में देवताओं के बीच श्रेष्ठ देवराज बन गये। तथागत बुद्ध लोग भी अप्रमाद की प्रशंसा करते हैं तथा प्रमाद की सदा निन्दा करते हैं।
अप्पमादरतो भिक्खु – पमादे भयदस्सि वा
संयोजनं अणुं थूलं – डहं अग्गीव गच्छति।
11. जो भिक्षु धर्म की रास्ता पर चलने में विलंब होने के खतरे को देखकर, बिना विलंब किए धर्म की रास्ता पर चलते रहता है। तो वह ठिक वैसे हीं छोटे-बड़े सभी बंधनों को नष्ट करके अमृत निर्वाण की ओर जाता है, जैसे आग सभी चीजों को जलाकर भष्म करते जाती है।
अप्पमादरतो भिक्खु – पमादे भयदस्सि वा
अभब्बो परिहानाय – निब्बानस्सेव सन्तिके।
12. जो भिक्षु धर्म की रास्ता पर चलने में विलंब होने के खतरे को देखकर, बिना विलंब किए धर्म की रास्ता पर चलते रहता है, तो वह धर्म की मार्ग से कभी भी भटक नहीं सकता है। वो निर्वाण के समीप हीं होता है।