धम्मपद – यमक वर मनोपुब्बंगमा धम्मा – मनोसेट्ठा मनोमयामनसा चे पदुट्ठेन – भासति वा करोति वाततो नं दुक्खमन्वेति – चक्कंव वहतो पदं। 1. इस जीवन में सभी अकुशल के लिए मन हीं मूल होता है। मन हीं मुख्य होता है। सभी अकुशल विचार मन से हीं उत्पन्न होता है। अगर जो कोई बुरे मन से… (Read More)
धम्मपद – अप्पमाद वर्ग अप्पमादो अमतपदं – पमादो मच्चुनो पदंअप्पमत्ता न मीयन्ति – ये पमत्ता यथा मता। 1. शील, समाधी, प्रज्ञा को बढ़ाने वाला अप्रमादी व्यक्ति अमृत निर्वाण को पाता है। लेकिन काम-वासना सुख में फंसा हुआ व्यक्ति को हमेशा केवल मृत्यु हीं मिलता है। बिना देर हुये धर्म की रास्ता पर चलने वाला व्यक्ति… (Read More)
धम्मपद – चित्त वर्ग फन्दनं चपलं चित्तं – दुरक्खं दुन्निवारयंउजुं करोति मेधावी – उसुकारोव तेजनं। 1. ये मन बड़ा ही चंचल है, चपल है। इसे अपने वश में रखना बहुत हीं मुश्किल है। मन को पाप से बचाना बहुत ही कठिन है। लेकिन ज्ञानी व्यक्ति उस मन को वैसे ही सीधा करता है, जैसे तीर… (Read More)
धम्मपद – पुप्फ वर्ग को इमं पठविं विजेस्सति – यमलोकञ्च इमं सदेवकंको धम्मपदं सुदेसितं – कुसलो पुप्फमिव पचेस्सति । 1. इस धरती को कौन जीतेगा ? स्वर्ग और नरक सहित सभी लोकों को कौन जीतेगा ? जैसे चतुर माली सुन्दर फुलों को चुनकर तोड़ता है, वैसे ही भली प्रकार से बताये गये इस अमृतमय बुद्धवाणी… (Read More)
धम्मपद – बाल वर दीघा जागरतो रत्ति – दीघं सन्तस्स योजनंदीघो बालानं संसारो – सद्धम्मं अविजानतं। 1. जागने वाले लोगों के लिये रात्रि बहुत लंबी होती है। बहुत थके हुये लोगों को पैदल जाने में योजन की दूरी बहुत लंबी होती है। उसी तरह परम सत्य को बोध न करने वाले अज्ञानी जन के लिये… (Read More)
निधीनंव पवत्तारं, यं पस्से वज्जदस्सिनंनिग्गय्हवादिं मेधाविं, तादिसं पण्डितं भजेतादिसं भजमानस्स, सेय्यो होति न पापियो । 1. खजाने का स्थान दिखाने वाले मित्र की तरह ज्ञानी व्यक्ति अपने लोगों के गलती को देखने पर कभी-कभी कठोर वाणी से भी अनुशासन कर सकते हैं। ऐसे ज्ञानी सत्पुरूषों की ही संगती करनी चाहिये। वैसे ज्ञानी लोगों की संगती… (Read More)

