पुण्यवान सज्जनो, पुण्यवान बच्चो,

यह खूबसूरत जातक कथा आप सभी ने पहले भी सुनी होगी । इस जातक कथा की पृष्ठभूमि बहुत मूल्यवान सलाह है जिसे हम अभी तक नहीं जानते हैं ।

भगवान बुद्ध के समय श्रावस्ती में एक धार्मिक युवक था। वह समय-समय पर जेतवन आश्रम में प्रवचन सुनने जाता है। धीरे-धीरे, उसका मन प्रभावित होता गया। वह भिक्षु बनना चाहता था। उसने गृहस्थ जीवन को छोड़ दिया और वह एक भिक्षु बन गया। उन्हें भगवान बुद्ध जी से धर्मोपदेश मिली। वह अकेला धर्म अभ्यास करने के लिए जंगल में चला गया। लेकिन भिक्षु का मन एकाग्र नहीं हुआ। तब वह इसके बारे में निराश हो गया था। कुशल बढाना छोड़ दिया। उसने लापरवाह से और मज़ाक में समय बिताया। तब बड़े भिक्षुओं ने भिक्षु को ऐसा न करने की सलाह दी और कोशिश करने के लिए कहा। और इस दुर्लभ अवसर को छोड़ने को मना किये। फिर भी वह नहीं सुना। अंततः वे भिक्षु की अनिच्छा से उसे भगवान बुद्ध के पास ले गये। भगवान बुद्ध ने भिक्षु से पूछा: “क्‍या यह सच है, भिक्षु… कि अब धर्म का अभ्यास करने में कोई रूचि नहीं है। सेवा करने में भी उत्साह नहीं है | बेवजह सोने में समय बिताते हो। भीड़ के साथ मौज-मस्ती में समय बिताते हो?

“जी हाँ,……भगवन”

” भिक्षु …पहले चूडियाँ बेचनेवाला एक फेरीवाला हुआ करता था। एक दिन खरीदारी के दौरान उन्हें एक लाख रुपये की सोने की थाली मिली। उसे उस समय उस सोने की थाली लेने का अवसर मिला था। लेकिन वह यह सोचकर चला गया कि वह बाद में वापस आकर लूँगा। तभी एक और बनिया आया और उसे ले गया। जब वह वापस आकर देखता है तो यह नहीं था। वह नुकसान से तबाह हो गया था। भिक्षु, क्या तुम उस घाटे के व्यापारी की तरह बनने जा रहे हो? इस क्षण सम्पत्ति को क्‍यों खो दें जब तुमने महान बुद्ध शासन प्राप्त किया है जो तुम्हें चार दुर्गतियों से मुक्त करता है और तुमको मार्गफल का सुख देता है? क्या उसके बाद पछताने की कल्पना है?

तब भिक्षु हारे हुए व्यापारी की कहानी सुनने के लिए बहुत उत्सुक थे। भिक्षुओं ने सोने की थाली खोने की वजह से शोक करने वाले व्यापारी की कहानी बताने के लिए बुद्ध से याचना की।

पुण्यवान सज्जनो, पुण्यवान बच्चो,
देवदत्त हमारे बोधिसत्व के पीछे प्रतिशोध लेते हुए आने की कहानी की शुरुआत सेरिवाणिज जातक से हुई है। यह पाँच कल्प के पहले हुआ था। बोधिसत्व जी ने असंख्य चार कल्प और एक लाख कल्प तक पारमिता पूर्ण की। इतने लंबे समय तक बुद्ध के जीवन के पीछे देवदत्त नहीं आया। बुद्धत्व प्राप्त करने के पाँच कल्प पहले यह समस्या उत्पन्न हुई। बहुत से लोग सोचते हैं कि देवदत्त बुद्ध के पीछे असंख्य कल्पों तक आया है। नहीं, ऐसा नहीं हुआ।

तो, पांच कल्प पहले, हमारे बोधिसत्व सेरीव नामक देश में एक फेरीवाले थे। उसी देश में एक और फेरीवाला था जिसका नाम सेरी था। लेकिन यह व्यापरी बहुत स्वार्थी था। वह केवल अपने आप को देखता और बहुत चालाक और बहुत लालची था। इसलिए उन दोनों ने नीलवाहिनी नदी पार की और अंधपुर नामक एक नगर में व्यापार किया। जब वे व्यापार कर रहे थे, दोनों ने बात की और शहर की गलियों को साझा किया।

उन्होंने उन गलियों में कारोबार किया जो उन्हें मिलीं। समझौते के अनुसार सबसे पहले सेरी अपनी गलियों में व्यापार करने निकला बाद में दूसरा व्यापारी।

एक दिन सेरी एक गली में खरीदारी करने गया। उस गली में एक पुराना सेठ घर था। अब यह सेठ परिवार बहुत गरीब हो चुका है | अब कोई अमीर रिश्तेदार नहीं हैं। उस घर में केवल एक पोती और एक दादी है। जब सेरी व्यापारी चिल्ला रहा था और नारे लगा रहा था, तब पोती ने उसकी आवाज सुनी। वह घर से बाहर आ गयी। वह सड़क पर देखती रही। वह फिर जल्‍दी में घर भागी।

“ओ मेरी दादी, मेरी दादी…एक बनिया आ रहा है। मुझे भी चूडियाँ चाहिए। मुझे बहुत पसंद है……वे सुंदर चूड़ियां हैं।”

“मेरी बेटी…वे बहुत महंगे हैं न, और हम उन्हें खरीदने के लिए पैसे कहाँ से लाएँ मेरी बेटी? हम तो दूसरों की सेवा करके जीविकोपार्जन करते हैं।”

तब पोती ने अपना चेहरा उठाया। उसने अपना छोटा सिर हिलाया। उसकी आँखों में आँसू भर आए। वो फिर कराहने लगी। चूड़ियों की आवाज धीरे धीरे करीब आ रही थी। छोटी बच्ची और भी परेशान थी। ऐसा लगता है कि उसके मन में कोई नया उपाय आ गया। वह तुरंत घर के अंदर पुराने मिट्टी के बर्तनों की गोदाम में गयी और जंग लगी थाली लायी।

“दादी, हमारे परदादा के खाने का बर्तन है। तो चलिए इसे आजमाते हैं और एक चूड़ी मांगते हैं।”

“अरे लड़की, हमें कैसे पता चलेगा कि व्यापारी इसे ले जाएगा? अगर वह बनिया इसे नहीं खरीदा तो हम क्या करेंगे?”

“अरे दादी, यह छोड़ने लायक बर्तन नहीं है। मैं उस बनिया को बुलाती हूँ।” कहकर पोती ने व्यापारी को पुराने जीर्ण-शीर्ण सेठ घर में बुलाया। तब दादी ने व्यापारी से कहा कि ” सुनो बेटे, ये मेरी पोती एक चूडी माँगकर रो रही है। मैं बच नहीं सकती। अरे, मेरे बेटे, यह पुरानी थाली है, जो हमारी पीढ़ी से आ रही है और ये इस लड़की के परदादा की थाली है, जिसमें वे खाना खाते थे। यह रहा…वह लो और इस लड़की को कुछ तो दो बेटा।

सेरी व्यापारी ने थाली हाथ में उठायी। उसने थाली को सुई की नोक से खरोचकर देखा। असली सोने की थाली ! तब उसे बड़ा लालच पैदा हुआ। उसने सोचा कि थाली को बिना कुछ दिए घटिया दिखाकर खरीद लेना चाहिए। उसने थाली एक तरफ फेंक दिया।

“इसका कोई मूल्य नहीं है। यह लगभग आधा मास के लायक है | इसे कुछ भी दे नहीं सकता। मूल्य बहुत कम है।” कहकर वह अपने चूड़ियों के बोझे को कमर पे लादते हुए चला गया। आंसू भरी आँख़ों से पोती ने चूडियों की ओर देखा। दादी ने पोती के सिर को छुआ | उसने थाली उठायी और उसे वापस बर्तनों के ढेर में फेंक दिया।

थोड़ी देर के बाद एक और व्यापारी की आवाज सुनाई दी। “काँच की चूडियाँ, काँच की चूडियाँ ” दु:ख में बगल में बैठी लड़की फिर उठ खड़ी हुई। वह घर से बाहर निकली।

वह सड़क की ओर देख रही है। यह व्यापारी पडोसी लोगों से प्यार से बात करता है। मासूम लग रहा है। वह फिर अपनी दादी के पास भागी। ” हे दादी एक और व्यापारी आ रहा है। चलो, उसे वह थाली देते हैं और एक चूड़ी मांगते हैं। अरे बच्ची, मुझे उन व्यापारीयों पर भरोसा नहीं है । देखा है न कि पिछला आदमी थाली को फैंककर चिल्लाकर गया था। यह आदमी भी ऐसा ही करेगा।”

“नहीं दादी। यह बनिया एक अच्छे आदमी की तरह दिखता है। दादी मैं उसे बुलाती हूँ …… यह थाली इस व्यापारी को देकर देखते हैं।”

“अच्छा, तो फिर उसे बुलाओ।” तब पोती फिर से बाहर की ओर भागी और उस व्यापारी को बुलाया। बनिया ने सेठ के घर में आकर अपना बोझा जमीन पर रख दिया।

“अरे बेटे, मैं अपनी इस लड़की से छुटकारा नहीं पा सकता। वह एक चूडी के लिए रोती रहती है। तो बिना इंकार किये एक चूड़ी दे दो। हमारे पास सिर्फ यह थाली है, कोई सिक्के नहीं। वह थाली पुरानी है, बेटा। ये पोती के परदादा के खाने की थाली है। तो यह लो और उसे वह छोटी सी चूड़ी दे दो, बेटा। तब बोधिसत्व व्यापारी ने थाली हाथ में ली। उसने सुई के नोक से एक रेखा खींची। दोनों आंखें ऊपर उठ गईं। माथे पर हाथ रखा।

“बाप रे, यह सोने की थाली है… इसकी कीमत करीब एक लाख सोने के सिक्कों की है… हमारे पास इतनी महंगी वस्तुएं कहां हैं?”

“सच में, बेटा, वह इतना मूल्यवान है? जो व्यापारी पहले आया था, उसने थाली अपने हाथ में ले ली और मुझे और लड़की को धोखा देकर कहते हुए कि आधा सिक्का भी इसके लायक नहीं है, व्यापारी ने थाली को जमीन पर फेंककर चला गया। अरे , लगता है तुम्हारे पुण्य के कारण ये थाली सोने की हो गयी । बेटे, तुम वह थाली ले लो और हमारी इस लड़की को एक चूड़ी दे दो।”

“दादी, मेरे पास पाँच सौ स्वर्ण मुद्राएं हैं, मेरी इन चूड़ियों और हारों की कीमत भी पाँच सौ स्वर्ण मुद्राएं हैं। मैं यह सब दूंगा, पर क्या तुम मुझे सिर्फ ये तराजू और चूड़ी का डिब्बा और आठ सिक्‍के दे सकती हो, दादी?”

“ले लो बेटा। बहुत बहुत धन्यवाद बेटा | तूने हमें एक बड़े धोखेबाज के हाथों पकड़े जाने से बचाया।”

तो बोधिसत्व व्यापारी इसे ले गया और नदी के किनारे चला गया। वहा पे एक नाव खड़ी थी। नाव चालक को उसने आठ सिक्‍के दिए । वह नाव में चढ़ गया और चला गया। फिर सेरी नाम का पहला व्यापारी पुराने सेठ घर में लौट आया ।

“यह घर की लड़की कहाँ है? वह दादी कहाँ है ?” फिर दादी निकलीं। बच्ची भी दादी की गोद में लटकी हुई थी। “क्यों ? क्या हुआ बोलो ?”

“वह थाली लाओ, ……मैं थोड़ा कुछ देने आया था…… इस बेचारी लड़की को ? ”

“अरे व्यापारी, तुम्हें अब ये बेचारी लग रही है? एक लाख सोने के सिक्‍कों के मूल्य की थाली यह कहते हुए फेंक दी कि यह एक आधा मास के लायक नहीं है। एक बहुत ईमानदार व्यापारी आया था। वह तुम्हारी तरह नहीं था। उसने हमें सारे पैसे और सामान सब दिये और वह सोने की थाली ले गया। ”

तब सेरी व्यापारी के पास जो सामान का बोझा था , वह जमीन पर गिर पड़ा। वह खुद जमीन पर गिर पड़ा, घुटने टेकने लगा। आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा। थोड़ी देर बाद उसे होश आया।

” हैं. … फिर से कहना …मेरी सोने की थाली कौन ले गया? हाय ! तुमने इसे किसको दिया?”

” वह आदमी एक अच्छा व्यापारी है। तुम जाओ और उस व्यापारी से व्यापार सीखो।”

” ठीक है, ठीक है ,वह कहाँ चला गया ? हाय! मेरी सोने की थाली लेकर वह कहाँ गया, मुझे बता। ”

पोती ने अपना हाथ फैला दिया।

“अहा । देखो, वह अच्छा चाचा उस नाव पर सवार होकर जा रहा है ”

सेरी व्यापारी भूल गया कि वह कहाँ था | उसने अपना सीना थपथपाया। तराजू के दो हिस्सों को हटा दिया और फेंक दिया। तराजू की डंडी उसने लकड़ी के टुकड़े की तरह अपने हाथ में ले लिया। दौड़ कर नदी के पास गया और जोर से चिल्लाया।

” ओ नाविक, इधर आ…… इधर आ…” कहकर उसने तराजू के दंड को हाथ में लिया और चिल्लाया। तब बोधिसत्व व्यापारी ने नाविक से कहा:

” जिस हालत में वह व्यापारी दिख रहा है, मालूम होता है वो बहुत गुस्से में है। मुझसे नफ़रत कर रहा है। यदि तुम अब नाव घुमाओगे , तो वह मुझे तबाह देगा। इसलिए नाव को मत घुमाओ और हम जल्दी नदी पार करते हैं ।”

नाविक ने नाव को घुमाया नहीं। वह नदी पार करना जारी रखा। उसके हाथ में आठ सिक्‍के हैं। उसे उस व्यक्ति की बातें माननी पड़ेगी क्यूंकि उसने उसे पहले ही बड़ी संख्या में सिक्के दे चुके थे। नाव दूर चली जाती है। सेरी व्यापारी ने नदी किनारे घुटने टेककर उस तराजू के दंड को गिरा दिया। उसने अपनी उँगलियाँ फैलायीं और दोनों हाथों को रेत पर दबाया। बहुत सी रेत को मुट्टी में लिया और उसने दोनों हाथ ऊपर उठाये। अपने दाँत पीसते हुए वह दूर देख रहा है। उसकी आँखें लाल हो गयीं हैं और भयानक नज़ारा आया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसकी आंखों के सामने दिख रहा था कि व्यापारी नदी पार करने के लिए धीरे-धीरे नदी के दूसरी ओर पहुंच रहा है । साँस फूलने लगी, जोर से खांसी आ गई। उसके मुंह से खून निकला और उसने उल्टी कर दी। वह वहीं पर मर गया और बोधिसत्व व्यापारी के प्रति वैर भाव के साथ उसकी मृत्यु हो गई।

पुण्यवान सज्जनो, पुण्यवान बच्चो,

यदि इस सेरी व्यापारी ने बोधिसत्व व्यापारी से कृपापूर्वक पूछा होता, तो वह उस सोने की थाली की बिक्री से कम से कम आय का एक हिस्सा मांग सकता था। लेकिन वह अच्छी नियत से नदी के पास नहीं आया, क्रोध में आया था। यदि बोधिसत्व व्यापारी उस समय उसके सामने होते , तो वह निश्चित रूप से उसे मार डालता। बोधिसत्व व्यापारी बच गया क्योंकि उसने समझदारी से काम लिया।

तो अतीत की प्रासंगिक कहानी बताते हुए भगवान बुद्ध ने इस प्रकार बताया। “अब देखो, भिक्षु… सोने की थाली सबसे पहले सेरी व्यापारी को प्राप्त हुई थी, तब उसे लेने का अवसर मिला था। उसकी नैतिकता की कमी के कारण ऐसे हुआ था। गुणों की कमी के कारण उसने सोने की थाली खो दी। इस शासन के सोने की थाली निर्वाण का महान मार्ग है। जो व्यक्ति सद्गुणों की उन्नति के लिए प्रयत्न नहीं करता, तो उसकी प्रगति कैसे हो सकती है? बुद्धिमान अच्छा व्यापारी सोने की थाली का दायाद बन गया। ऐसे लोग मेरे शासन के भी दायाद होते हैं। उस समय वह मूर्ख व्यापारी देवदत्त ही था। बुद्धिमान व्यापारी मैं ही था। इस प्रकार भगवान बुद्ध ने निर्वाण के मार्ग पर प्रकाश डालते हुए धर्म का उपदेश दिया। चार आर्य सत्यों को अच्छी तरह से बताया। तब भिक्षु को अपने दोष को दूर करने का उत्साह पैदा हुआ और क्रमशः मार्गफल पाकर अरहंत बना। इस जातक कथा को सुनने वाले बहुत से लोगों ने क्षण-संपत्ति को खो देने की त्रुटि को अच्छी तरह से समझा। उन्हें यह भी समझ आ गया की सद्गुणों की रक्षा करके काम करने के कारण मुझे अच्छाई प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ।

पुण्यवान सज्जनो, पुण्यवान बच्चो,

इस सेरिवाणिज की कहानी कहती है कि बिना सद्गुणों के स्वार्थ लाभ के लिए काम नहीं करना चाहिए और सद्गुणों के साथ काम करके उन्नति करनी चाहिए। यही इस जातक कथा का सही अर्थ है।

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