
उस समय, भगवान बुद्ध श्रावस्ती के जेतवन में रह रहे थे, एक भिक्षु निर्वाण को साक्षात् करने के लिए लंबे समय से प्रयत्न कर रहा था, लेकिन उसे फल नहीं मिल सका। वह ध्यान लगाना और प्रवचन सुनना छोड़ दिया। यह जानकर, भगवान बुद्ध ने उस भिक्षु के मन को शांत करने और उसके प्रयासों को बढ़ाने के लिए अतीत की एक कहानी का उपदेश दिया।
– बुद्ध –
भिक्षु, यहां तक कि जब मैंने अपने पिछले जन्मों में अपना राजत्व खो दिया था, तब भी मैं अपना राजत्व पुनः प्राप्त कर सका, क्योंकि मैंने अपने प्रयास नहीं छोड़े और हार नहीं मानी।
बहुत समय पहले, वाराणसी शहर में ब्रह्मदत्त नाम का एक राजा था, और वह राज्य एक समृद्ध और शांतिपूर्ण देश था। देश के सभी लोग वाराणसी के राजा की सेवा प्रेम और ईमानदारी से करते थे। राजा एक ऐसा व्यक्ति था जो शीलवान था, एक दयालु व्यक्ति था जो धैर्य और करुणा से भरा था, राजा लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करता था जैसे एक माँ अपने बच्चों की देखभाल करती है। लोग राजा को महाशीलव कह कर पुकारने लगे। यहाँ तक कि देश के छोटे-छोटे बच्चे भी राजा के समान नेक व्यक्ति बनना चाहते थे। राजा की दयालुता के कारण, एक बेईमान मंत्री का राजा और उसके नीति से डर खत्म हो गया। इसलिए एक दिन वह राजा के महल में चुपचाप घुस गया। वह छिपकर राजा की खूबसूरत रानियों को देख रहा था।
– मंत्री –
राजा महाशीलव बड़ा मूर्ख है। चाहे मैं कुछ भी करूँ, मुझे सज़ा नहीं मिलेगी। भले ही मुझे सज़ा मिले, पर मैं मारा नहीं जाऊँगा। मैं क्यों डरूँ ?
उसने राजा महाशीलव की दयालुता का फायदा उठाया और उसने एक खूबसूरत राजकुमारी के साथ गलत व्यवहार किया, कुछ दिनों के बाद उसकी यह गलती सामने आई और मंत्रियों ने राजा को इसकी जानकारी दी।
– अन्य मंत्रियो –
है राजन, इस दुष्ट व्यक्ति ने महल की रानियों के साथ गलत व्यवहार किया। महाराज इसे मृत्युदंड दें ।
– राजा –
अफसोस कि मैं उसे मार नहीं सकता। लेकिन वह इस स्थिति में रहने के लायक नहीं है।’ उसे देश से निकाल दो.
– मंत्री जी –
मंत्री जी, आप कल सुबह यह देश छोड़ देंगे। यह राजा का आदेश है ।
– मंत्री –
आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? अच्छा, देखते हैं, मैं उसका बदला जरूर लूंगा। मुझे इस बनारस से फायदा नहीं है। सिंहासन शाश्वत नहीं है। देखो में कोशल देश में जाकर क्या कर सकता हूं।
कोशल देश में रहने वाले उनके एक पुराने मित्र ने उनकी मदद की, जो अपनी पत्नी के साथ पहाड़ों और नदियों को पार करते हुए कोशल देश में पहुंचे, और क्योंकि वह महा कोसल के राजा के मंत्री थे, उन्होंने इस मंत्री को सरकारी सेवा में भर्ती करने में उनकी मदद की। राजा कोशल को सेवा करते-करते धीरे-धीरे उसकी राजा से मित्रता हो गई। वह अक्सर वाराणसी के बारे में विस्तार से बताने लगा और राजा को राज्य पर कब्ज़ा करने के लिए युद्ध करने के लिए मनाने की कोशिश करने लगा।
– मंत्री –
है राजन , महाशीलव एक बलहीन राजा है। कम से कम वह तो एक चींटी को भी नहीं मारता, अगर हम लड़ेंगे तो जीत हमारे हाथ में होगी. ऐसे अवसर को मत गँवाओ मेरे प्रभु। वाराणसी मधुमक्खियों के बिना मधुमक्खी के छत्ते की तरह है।
– कोसलराज –
राजपुरुष ! क्या तुम सच कह रहे हो ? कहीं तुम झूट तो नहीं बोल रहे ? एक चींटी भी नहीं मारता वो राजा है या कोई साधु ?
– मंत्री-
महाराज, मैं आपसे झूठ क्यों बोलू , जाकर स्वयं देख लें ।
– राजा –
राजपुरुषों, ऐसा है तो , तुम चोरों की तरह मौका पाकर वाराणसी के घरों में घुस जाओ और उन्हें लूट लूट लो । इसके बाद ऐसा व्यवहार करो कि सैनिक तुम्हें पकड़ लें। राजा से कहो कि तुम गरीबी के कारण चोरी करते हो। मुझे देखना है कि राजा शीलव तुम्हारा क्या बिगाड़ेगा। हम देखते हैं कि सचमुच इस अमात्य की बात सच है कि नहीं।
राजा कोशल की योजना के अनुसार, गुप्तचर चोरी में लग गया। राजा महा शीलव के शाही लोगों ने चोरों को पकड़ लिया और राजा के पास ले गए।
– चोर-
हे प्रभु मुझे क्षमा कर दो। मैंने गरीबी के कारण चोरी की। हम बहुत समय से भूखे हैं। हे भगवान, मेरे पास 10 छोटे बच्चे भी हैं। उनकी भूख मिटाने के लिए मुझे चोरी करनी पड़ी । करने को और कुछ नहीं है प्रभु।
– राजा सीलव_
तो पुत्रों ,आपने आकर मुझसे यह क्यों नहीं कहा ? यदि आपने मुझसे कहा होता तो मैं मदद करता हूं न । ऐसे गलत काम मत करो । तुम परिश्रमी बनो और मैं तुम्हें धन दूँगा, तुम अच्छी नौकरी करो और अपनी पत्नी और बच्चो का भरण-पोषण करो।
– जनता –
महाराज की जय हो, महाराज की जय हो। हे प्रभु, आपको लंबी उम्र का आशीर्वाद मिले। आप दीर्घायु हो।
चोरों का समूह राजा कोशल के पास लौट आया और उदार और दयालु महाशीलव राजा का मज़ाक उड़ाया।
– चोर –
हे राजन, महा शीलव राजा एक रीढ़विहीन व्यक्ति है । आपकी तरह महान नहीं है, आपमें और उसमे आसमान- जमीन का फर्क है। राजा शीलव कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो युद्ध के लिए आता हो। मूर्ख की तरह सब कुछ के लिए माफ कर देता है।
– कोशल राजा –
तो फिर अब युद्ध का उचित समय आ गया है। सेनापति, युद्ध के लिये तैयार रहे, चतुर्भुज सेना तैयार रहे। बनारस का राज्य अब हमारे हाथ में है।
कोशल देश की सेना राजा से युद्ध करने गयी। राजा महाशीलव को आक्रमण का पता चल गया लेकिन न तो भय, न घबराहट और न ही क्रोध उत्पन्न हुआ। उन्होंने अपनी सेना को पीड़ा देने के लिए और मारने के लिए या युद्ध में जाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया। इसके बजाय, किसी को भी राज्य लेने को कहते हुए शहर का द्वार खोल दिया गया और राज्य राजा कोशल को सौंप दिया गया।
– कोशल का राजा-
यह राजा शीलव बड़ा कायर था और बिना युद्ध करके उसकी सारी संपत्ति मेरी हो गयी। इस तरह का बेवकूफ। मेरे मंत्री ने जो कहा वह बिल्कुल सही है। उसके मुंह में सोना डालना चाहिए। सुनो ! श्मशान में गढे खोदके सबको गर्दनों तक गाड़ दो। रात में सियार हैं उनकी देखभाल के लिए । मूर्ख लोग।
उस रात राजा कोशल और वैरी मंत्री शराब पीकर खुश थे। राजा शीलव और उनकी प्रजा को श्मशान में दफनाया गया। राजा शीलव ने मंत्रियों से कहा ।
राजा शीलव –
कोई भी राजा कोशल से नफरत मत करों । आओ हम सब वैर,घृणा और क्रोध रहित मैत्री फैलाये। यदि हमारा मन दूषित है, तो हम नुकसान में हैं। क्रोध करके मरने पर हमारी दुर्गति होगी ।
आधी रात को मांसाहारी सियार श्मशान में आये। राजा और मंत्री उन्हें देखा , तो वे तुरंत चिल्ला उठे। उनकी चिल्लाहट से सियार भाग गए । जब वे कुछ दूर गए और पीछे मुड़कर देखा तो देखा कि वहां कोई नहीं है और वे फिर से समूह पर हमला करने के लिए दौड़े। उसके बाद, राजा ने देखा कि सियारों का नेता उसकी ओर आ रहा है। राजा ने अपनी गर्दन आगे बढ़ाई ताकि सियार उसे पकड़ सके। जब सियार राजा की गर्दन के पास आया, तो राजा ने उसे जमीन पर दबा दिया। जब राजा ने हाथी जैसी अपनी शक्ति से सियार को दबा लिया और नायक सियार डर के मारे चिल्लाया , तो सियारों का झुंड जंगल में भाग गया। मुक्त होने के अपने संघर्ष में, सियार ने महाशीलव के चारों ओर धरती को खोदके ढीला कर दिया। राजा सियार को छोड़ दिया और अब अपनी पूरी ताकत से गड्ढे से बाहर आया। राजा ने स्वयं को मुक्त कराया और अपनी प्रजा को बचाया। मंत्री चारों ओर से घिरे हुए थे। शमशान के दूसरी ओर दो यक्ष रहते थे। दोनों यक्ष एक शव का बटवारा नहीं कर सके और बहस करने लगे।
– यक्ष 1 –
अरे यक्ष यह शव मेरा है। उसका सिर मेरी ओर मुड़ा है, तो शव मेरा है।
– यक्ष 2 –
अरे यक्ष, यह शव मेरे हिस्से में है। तो शव मेरा है।
– यक्ष 1-
हम इसका निपटारा नहीं कर सकते, यह बात हम ज्ञानी व्यक्ति से सुलझाएं। राजा महाशीलव शीलवान और बुद्धिमान है । राजा भी हमारी दूसरी ओर है । आएं हम राजा को बताएं।
– राजा महाशीलव –
प्रिय दानव। मैं आपकी समस्या का समाधान कर दूंगा. लेकिन इससे पहले, कोई जाकर और मेरी मंगल तलवार ले आओ,जो मेरे शयन कक्ष में है।
एक यक्ष महल में गया और मंगल तलवार ले आया। राजा महाशीलव ने शव को दो भागों में विभक्त कर दिया। तर्क-वितर्क छोड़कर यक्षों ने खुशी-खुशी मांस खाया और अपना पेट भर लिया।
दोनों यक्ष –
महाराज, आपने हमारी बहुत मदद की। आप हमसे क्या चाहते हैं?
– राजा महाशीलव –
राक्षसों, मुझे राजा कोशल के शयन कक्ष में रखो। और मेरे लोगों को घर भेजो।
दोनों यक्ष अपने चमत्कार राजा महाशीलव को राजा कोशल के शयन कक्ष में ले गए। अन्य मंत्रियो को अपने घर वापस भेजें। राजा महाशीलव ने सो रहे राजा कोशल के शरीर पर तलवार रख दी। राजा कोशल बहुत डर गया और उठ खड़ा हुआ।
– राजा कोशल –
महाशीलव , तूम यहाँ हो ! तुम यहाँ कैसे आये? तुम अब तक जीवित कैसे हो मुझे तो इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा।
महाशीलव ने शमशान में जो कुछ भी हुआ , वह सब राजा कोशल को बता दिया। यह सुनकर राजा कोशल को बहुत दुःख हुआ। क्योंकि वह राजा शीलव के गुणों को नहीं समझ सका, जो कठोर से कठोर यक्ष भी उसे पहचान लेते थे। इससे वह बहुत शर्मिंदा हुआ।
– राजा कोशल –
प्रिय महाराज शीलव, मैं शपथ लेता हूँ कि मैं आपको फिर कभी धोखा नहीं दूंगा। आज से यह राज्य आपका राज्य हो जायेगा। इसके बाद में राज्य की सुरक्षा की हर बात का ध्यान रखूंगा.’ आपको इसके बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। आप अपने राज्य पर शासन करें.
राजा कोशल ने उस चुगलखोर मंत्री को दण्डित किया। राजा महाशीलव ने देश की जनता को सम्बोधित किया।
– राजा महाशीलव –
हे प्रजा, यदि मैं प्रयास छोड़ दिया होता, तो मेरी सभी संपत्ति नष्ट हो जाती । इसलिए आपलोग भी प्रयास करना न छोड़ें।
जब भगवान बुद्ध ने महाशीलव जातक का उपदेश दिया, तो वह भिक्षु जिसने प्रयास करना छोड़ दिया था, उसके हृदय में वीरता आ गई। चार सत्यों को सुनने के बाद वह उसी क्षण अर्हत बन गये। उस समय दुष्ट मंत्री देवदत्त ही था। राजा शीलव भगवान बुद्ध ही थे। राजा के परिवार लोग बुद्ध के लोग ही थे।