2. पुण्य करोगे तो सुख ही मिलेगा !
पुण्यवान सज्जनों, पुण्यवान बच्चो, जब हमारे भगवान बुद्ध श्रावस्ती में विराजमान थे, तब वहाँ अदिन्नपुब्बक नाम का एक बहुत ही कंजूस पिता था। उसके इकलौते बेटे का नाम मट्ठकुंडली था। उसने अपने बेटे के लिए दुकान से कुंडल नहीं खरीदे। उसने क्या किया ? उसने सोने के दो टुकड़े लिए और उन्हें पीटकर एक जोड़ी कुंडल बनाईं और उन्हें अपने बेटे के कानों में पहना दिया। इसलिए बेटे को मट्ठकुंडली नाम पड़ा। परिवार में किसी को खान-पान तक ठीक से नहीं मिला। अंततः इस बालक को पाण्डु रोग हो गया। पैसे खर्च होने के डर से पिता वैद्य के पास गया, और वैद्य से बातें करने लगा, उसी बीच उसने पूछा, “म् …म्…वैद्य जी, यदि किसी को पांडु का रोग हो जाए, तो कौन सी दवा अच्छी होगी?” वैद्य जानता था कि वह चालाकी कर रहा है। इसलिए उसने ऐसी दवा बताई जिससे बीमारी बढ़े। अदिन्नपुब्बक दवा लाया और अपने बेटे को दिया। रोग बढ़ता गया, बेटा मृत्यु के समीप पहुँच गया।
उसने सोचा, ”अगर पडोसी लोग इस बीमार बच्चे को देखने घर के अंदर आएंगे, तो वे मेरी संपत्ति को देख लेंगे।” इसलिए उसने अपने बेटे को एक लकड़ी के बिस्तर पर घर के बाहर बरामदे में लिटा दिया। तभी भगवान बुद्ध ने अपने दिव्यचक्षु से देखा कि जो बच्चा मृत्यु की पीड़ा सह रहा है, वह बहुत पुण्यवान है।
भगवान बुद्ध ने उसे देखकर उसकी ओर बुद्ध रश्मि फैलाया। मट्ठकुंडली दीवार की ओर लेटा हुआ था। उसे अचानक कुछ अद्भुत सा महसूस होने लगा। उसने सिर मोडकर देखा। अद्भुत है…. विस्मित है…. उसके सामने करुणा के सागर भगवान बुद्ध हैं…। वह बहुत खुश हुआ। “अरे ! मेरी परवाह तो मेरे पिता को भी नहीं है। घर में कोई मुझे प्यार नहीं करता। लेकिन जब मैं मुसीबत में हूँ, तो भगवान बुद्ध मुझसे मिलने के लिए पधारे हैं। वे मेरे जैसे छोटे बच्चों से कितना प्रेम करते हैं ! अहो मेरा सौभाग्य ! साधु ! साधु !! मुझे भी भगवान बुद्ध से प्रेम है। कितना अच्छा होता, अगर मैं हमेशा भगवान बुद्ध के साथ रह पाता ! मट्ठकुंडली अपना सारा दुःख भूला दिया और बहुत खुश हुआ। माँ-पिताजी के प्रति मैत्री फैलाया। वह खुशी-खुशी मर गया। वह एक देवपुत्र बन गया और देवलोक में जनम लिया। तभी भगवान बुद्ध ने यह गाथा कही।
मनो पुब्बंगमा धम्मा मनोसेट्ठा मनोमया।
मनसा चे पसन्नेन भासति वा करोति वा।
ततो नं सुखमन्वेति छायाव अनपायिनि।
अर्थ:
इस जीवन में सभी कुशल के लिए मन हीं मूल होता है। मन हीं मुख्य होता है। सभी कुशल विचार मन से हीं उत्पन्न होता है। अगर जो कोई प्रसन्न मन से वाणी से कुछ बोलेगा या शरीर से कुछ करेगा तो सुख उसके पीछे-पीछे ठीक वैसे हीं आता है जैसे स्वयं का पीछा कभी न छोड़ने वाली छाया आती है।
तो पुण्यवान सज्जनों, पुण्यवान बच्चो, मट्ठकुंडली की मृत्यु के बाद ही कंजूस पिता की आँखें खुलीं। वह प्रतिदिन श्मशान में जाता और अपने बेटे को याद करके रोता। मट्ठकुंडली देवपुत्र ने दिव्यनेत्र से यह देखा। “ओह, ये मेरे पिता हैं न! जब मैं बीमार था, तो उन्होंने मुझसे प्यार नहीं किया। अब मेरे मरने के बाद वह रो रहा है। बुद्धिमान व्यक्ति ऐसा नहीं करता है। भले ही मेरे पिता मुझसे प्यार नहीं करते, पर मैं अपने पिता से प्यार करता हूँ। अगर मैं अपने पिता का होश जगाकर उन्हें पुण्य करने के लिए आदत डालवा दूँ, तो इससे मुझे भी पुण्य मिलेगा।” उस दिन मट्टकुंडली देवपुत्र एक बच्चे का रूप लेकर श्मशान में एक ओर बैठ गया और जोर से रोने लगा। तभी अदिन्न पुब्बक ने उस रोते हुए बच्चे को देखा। वह बच्चे के पास गया। प्यार से बात किया। “प्यारे बेटे, तुम क्यों रो रहे हो? तुम जो भी माँगोगे मैं तुम्हें दूँगा।” “ओह, मामा, मेरे पास एक रथ है, पर उसके पहिये नहीं है। मुझे दो पहिये चाहिए। मैं इसलिए रो रहा हूँ।” अरे बेटे, वह तो छोटी सी बात है न। अगर तुम चाहो तो, मैं सोने या चाँदी से सुंदर पहिए बना दे सकता हूँ।” “नहीं… नहीं। मुझे ऐसे पहिए नहीं चाहिए। सूरज और चाँद ही मेरे पसंद के पहिए हैं।” अदिन्नपुब्बक हँसने लगा। “होह्… हो..अरे मूर्ख बच्चे, तुम पागल हो क्या ? सूरज और चाँद को कभी पहिए के रूप में लिया जा सकता है क्या ?”
“मैं मूर्ख हूँ या मामा ? मैं तो आँखों से दिखाई देने वाली चीज़ के लिए रो रहा हूँ। पर आप उस चीज़ के लिए रो रहे हैं, जो दिखायी देती ही नहीं। तो मूर्ख कौन, आप या मैं ? “
अदिन्नपुब्बक हैरान हो गया। सोचने लगा। यह बच्चा बहुत बुद्धिमान है। मेरे हित के लिए आया है। “हे मेरे बेटे, तुम कौन हो?” बच्चे का वेश छोड़कर एक देवपुत्र प्रकट हुआ। “पिताजी, मैं मट्ठकुंडली हूँ। भगवान बुद्ध ने मुझे बचाया। पिता जी आप भी भगवान बुद्ध की शरण में जाईये। रोना बंद करिये। आपके पास जो भी पैसे हैं उन्हें खर्च कीजिए और छोटे बच्चों की मदद कीजिए। गरीबों की मदद कीजिए । स्तूप-विहार बनाइए। और अपने जीवन में पुण्य संचय करिए। तब आप सुख भोग सकते हैं।
लोभ हमारे मन की गंदगी है। इसलिए लोभ को दूर करिए।”
पुण्यवान सज्जनों, पुण्यवान बच्चो, उसके बाद वह पिता एक महान दानपति बन गया। बहुत पुण्य किया। एक पुण्यवान बच्चा कितने अच्छे काम कर सकता है?
5 Comments
Sujata Yadav
Sadhu 🙏 Sadhu 🙏 Sadhu 🙏 dhamma katha padhkar Maan prasanna hota hai
Aachu
Sadhu sadhu sadhu 🙏🙏🙏🌸🌸🌸🙏🙏🙏🌸🌸 namo buddhay hamre gurubhante ji ko mere pranam 🙇♀️🙇♀️
Aachu
Sadhu sadhu sadhu 🙏🙏🙏🙏🙏🙏……
Chandan
Sadhu sadhu sadhu
Dhanshri
Sadhu Sadhu Sadhu 🙏🏻🙏🏻🙏🏻