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बुद्धानुस्सति ध्यान

1. वे भगवान बुद्ध जी अपने मन की राग, काम-वासना, क्रोध, गुस्सा, अहंकार, घमण्ड, मोह-माया, लालच आदि सभी चित्त विकारों को नष्ट कर दिये हैं। इस संसार में सभी मानव, देवता, ब्रह्म आदि इन चित्त विकारों से युक्त है, पर बुद्ध जी इन सारे चित्त विकारों को नष्ट कर दिये। इसलिए भगवान बुद्ध जी सभी चित्त विकारों को नष्ट करने के कारण अरहं कहलाते हैं।

2. वे भगवान बुद्ध जी बिना किसी की सहायता से संसार के दुखों को बोध किये। इस संसार में दुख का कारण तृष्णा है, उसे भी बोध किये। तथा ये भी बोध किये कि दुख का नाश तृष्णा के नाश से हीं होगा। एवं दुख को नष्ट करने का जो मार्ग होता है, उस आर्य अष्टांगिक मार्ग को भी बोध किये, उस मार्ग को परिपूर्ण किये। इस प्रकार से चार सनातन सत्य को, मुक्ति मार्ग को साक्षात् करने के लिए न कोई देवता मदद किया, ना ही कोई ब्रह्म मदद किया और ना ही कोई मानव मदद किया। वे बिना किसी के मदद से स्वयंभू ज्ञान से साक्षात् किये। इसलिए भगवान बुद्ध जी सम्मासम्बुद्ध कहलाते हैं।

3. वे भगवान बुद्ध जी अनंत ऋद्धि-सिद्धि से युक्त हैं। सभी प्राणियों के पिछले जन्मों को देख सकते हैं। ये प्राणी ऐसा कर्म करके कहाँ जन्म लिया, ये भी देख सकते हैं। बहुत दूर देवताओं का एवं ब्रह्मों के आवाज को अपने दिव्य स्रोत से सुन सकते हैं। सभी देव मनुष्यों के मन को पढ़ सकते हैं। सभी देव मनुष्यों के मन में छिपे विकारों को देख सकते हैं। ये देवता या मनुष्य के पास मुक्ति पाने का भाग्य है या नहीं, ये अपने बुद्ध ज्ञान से देख सकते हैं। उनको आकाश से जा सकता है, अंतर्धान हो सकता है… आदि अनंत ऋद्धि-सिद्धि से युक्त हैं।
इस प्रकार से अनंत ऋद्धि-सिद्धि से युक्त होकर परिशुद्ध तथा सरल जीवन बिताए हैं। इसलिए भगवान बुद्ध जी विज्जाचरणसम्पन्न कहलाते हैं।

4. भगवान बुद्ध जी राग, क्रोध, मोह, माया को नष्ट करने वाले सुन्दर एवं पवित्र आर्य अष्टांगिक मार्ग को खोजे हैं और उसी मार्ग पर चलकर अमृत निर्वाण को पाए हैं। इसलिए भगवान बुद्ध जी सुगत कहलाते हैं।

5. भगवान बुद्ध जी सभी ब्रह्म लोक, सभी देव लोक, प्रेत लोक, पशु-पक्षि लोक, मनुष्य लोक, नरक लोक आदि समस्त ब्रह्माण्ड के बारे में जान गये हैं। ये सभी लोक में जन्म लेने के मार्ग एवं उससे मुक्त होने का मार्ग जान गए हैं। वे इन सभी लोकों से मुक्त भी हो गए हैं। इसलिए भगवान बुद्ध जी लोकविदू कहलाते हैं।

6. भगवान बुद्ध जी अपनी महा करूणा से, विश्मित ज्ञान से देव मनुष्यों को सुधार दिये हैं। बिना किसी को कष्ट देकर अपनी ज्ञान की महिमा से सुधारे हैं। अनाचारी को सदाचारी बनाए हैं। कंजूसों को दानी बनाए हैं। हत्यारों को दयालु बनाए हैं। अहंकारी को निरहंकारी बनाए हैं। अज्ञानी को ज्ञानी बनाए हैं। अशांत मन वाले लोगों को शांत कराए हैं। संसार के दुखों में डूबे लोगोें को संसार के दुखोें से मुक्त कराए हैं। इस प्रकार से देव-मनुष्यों को सुधारने में सर्वश्रेष्ठ शास्ता हैं। इसलिए भगवान बुद्ध जी अनुत्तरो पुरिसदम्मसारथी कहलाते हैं।

7. भगवान बुद्ध जी सभी देव मानव को संसार के दुखों से मुक्त होने के लिए मुक्ति का मार्ग दिखाए हैं, भगवान बुद्ध जी देव-मनुष्यों के गुरू बन गए हैं। इसलिए भगवान बुद्ध जी सत्था देवमनुस्सानं कहलाते हैं।

8. भगवान बुद्ध जी स्वयं अमृत निर्वाण को साक्षात् करके सभी देव-मानव को अमृत निर्वाण को साक्षात करवाने के लिए धर्म बताए। इसलिए भगवान बुद्ध जी बुद्ध कहलाते हैं।

9. भगवान बुद्ध जी अनंत गुण को धारण करने के लिए भाग्यवान हुए। भगवान बुद्ध जी अपने सभी राग, काम-वासना, क्रोध, मोह को भष्म कर दिये। इसलिए भगवान बुद्ध जी भगवा कहलाते हैं।

इस संसार में भगवान तो केवल उन्ही को बोलते है जो अपने सभी चित्त विकारों को नष्ट कर दिया हो। भगवान बुद्ध तो सचमुच में भगवान हीं है। उन भगवान बुद्ध के नौ गुणों को इस प्रकार से बोलते हैं – इतिपि सो भगवा अरहं सम्मासम्बुद्धो विज्जाचरणसम्पन्नो सुगतो लोकविदू अनुत्तरो पुरिसदम्मसारथी सत्थादेवमनुस्सानं बुद्धो भगवा’ति।

इस प्रकार से भगवान बुद्ध जी अनंत गुणों से युक्त हैं। उन भगवान बुद्ध जी को उस समय के लोग पाली भाषा में इस प्रकार से नमस्कार करते थे।

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।

इसका अर्थ है – उन भगवान अरहंत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार हो।

इसलिए आप अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो आप भगवान बुद्ध के शरण में जाईये। अपने जीवन को भगवान बुद्ध जी को समर्पित कीजिए, आपका सदा कल्याण हीं होगा।