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1. शांत है इन्द्रियाँ उन श्रमणों की – मन भी है अत्यंत शांत
चाहे बैठे हों या चलते हों – है आचरण परम शांत
संयंमित है आँखें, नीची नजरों वालें – अर्थसहित बात है करते
ऐसे हैं मेरे श्रमणगण।

2. शरीर से होने वाले सारे कार्य – है परम पवित्र
वाणी भी अत्यंत है निर्मल – नहीं भड़कता कोई वचनों से उनके
शांत है उनका मन – परिशुद्ध रूप से चलता है
नहीं उतरते बुरे विचार – उन श्रमणों के मन में
ऐसे है मेरे श्रमणगण।

3. श्वेत शंख के आभा की तरह – अंदर-बाहर है परिशुद्ध
निर्मल गुणों से पोषित हैं वे श्रमण – परिपूर्ण धर्म से युक्त
ऐसे हैं मेरे श्रमणगण।

4. लाभ से होते अहंकारी दुनिया के लोग
पर टूट-गिर जाते अलाभ होने पर
लाभ-अलाभ में रहते अचंचल
बिना कोई दुख जताके वे श्रमण
ऐसे है मेरे श्रमणगण।

5. यश मिलने पर होते अहंकारी दुनिया के लोग
पर टूट-गिर जाते अपयश मिलने पर
यश-अपयश में रहते अचंचल
बिना कोई दुख जताके वे श्रमण
ऐसे हैं मेरे श्रमणगण।

6. प्रशंसा मिलने पर होते अहंकारी दुनिया के लोग
लेकिन गिर-फूट जाते निंदा मिलने पर
पर प्रशंसा-निंदा में रहते हर्षित
बिना कोई बदलाव
ऐसे हैं मेरे श्रमणगण।

7. सुख मिलने पर अहंकार जताते दुनिया के लोग
पर गिर फूट जाते दुख के आने पर
सुख-दुख में रहते अकम्पित
बिना किसी बदलाव
ऐसे हैं मेरे श्रमणगण।

(धम्मपदट्ठ कथा)

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