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असंखतं नन्तमनासवं च – सच्चं च पारं निपुणं सुदुद्सं
अजज्जरं धुवं अपलोकितं च – अनिदस्सनं निप्पपञ्चं च सन्तं
निब्बाणमेतं सुगतेन देसितं

सुगत तथागत भगवान बुद्ध निर्वाण के बारे में ऐसा बताये

असंखतं – अमृत निर्वाण किसी चीज से बना नहीं है
अनंतं – वो जो अनंत है
अनासवं – क्लेश-गंदगी से मुक्त है
सच्चं – परम सत्य है
पारं – भवसागर से पार है
निपुणं – जिसे सूक्ष्म प्रज्ञा से ही देखा जाता है
सुदुद्दसं – लेकिन उसे देखना बहुत कठिन है
अजज्जरं – जो निर्वाण कभी टूटता-फूटता नहीं है
धुवं – जो अचंचल है
अपलोकितं – उस निर्वाण की उत्पत्ति भी नहीं है, विनाश भी नहीं है
अनिदस्सनं – उसका कोई रंग, रूप, आकार नहीं दिखता
निप्पपञ्चं – कोई भी विकार निर्वाण का पीछा नहीं कर सकता
सन्तं – क्लेशों से मुक्त होने के कारण, जो पूर्ण रूप से शांत हो गया है

अमतं पणीतं सिवं च खेमं – तण्हक्खयो अच्छरियं च अब्भूतं
अनीतिकं अनीतिकधम्मं – निब्बाणमेतं सुगतेन देसितं

सुगत तथागत भगवान बुद्ध निर्वाण के बारे में ऐसा बताये

अमतं – जहाँ निर्वाण है, वहाँ मृत्यु नहीं है
पणीतं – परम उत्तम है
सिवं – जहाँ जन्म-मृत्यु का कोई भय नहीं
खेमं – जहाँ कोई शोक-दुख, संकट, पीड़ा, परेशानी नहीं है
तण्हक्खयो – जहाँ सारी तृष्णा नष्ट हो गई है
अच्छरियं – जो एकांत रूप से आश्चर्यमय है
अब्भुतं – जो एकांत रूप से अद्भुत है
अनीतिकं – जहाँ कोई खतरा नहीं है
अनीतिकधम्मं – जहाँ कोई खतरा नहीं है, वही निर्वाण का स्वभाव है

अजातं अभूतं अनुपद्दवं च – अकतं असोकं अथो विसोकं
अनुपसग्गं अनुपसग्गधम्मं – निब्बाणमेतं सुगतेन देसितं

सुगत तथागत भगवान बुद्ध निर्वाण के बारे में ऐसा बताये

अजातं – जिसमें किसी भी चीज की उत्पत्ति स्थान नहीं है
अभूतं – वो किसी भी चीज से नहीं बना है
अनुपद्दवं – वहाँ जन्म-मृत्यु का कोई उपद्र्रव नहीं है
अकतं – वो निर्वाण ना किसी ने बनाया है और नाहिं किसी चीज से बना है
असोकं – जहाँ कोई शोक-दुख नहीं है
विसोकं – वो शोक दुख से परे है
अनुपसग्गं – जहाँ कोई पीड़ा नहीं है
अनुपसग्गधम्मं – जहाँ कोई पीड़ा नहीं है, वो निर्वाण का स्वभाव है

गम्भीरं चेव दुप्पस्सं – उत्तरं च अनुत्तरं
असमं अप्पटिसमं – जेट्ठं सेट्ठन्ति वुच्चति
निब्बाणमेतं सुगतेन देसितं

सुगत तथागत भगवान बुद्ध निर्वाण के बारे में ऐसा बताये

गम्भीरं – जो गम्भीर प्रज्ञा से ही दिखता है
दुप्पस्सं – लेकिन बिना आर्य अष्टांगिक मार्ग पे चले उसे देख नहीं सकते हैं
उत्तरं – जो सभी लोकों को तैर चुका है
अनुत्तरं – उस निर्वाण से ज्यादा उत्तम और कुछ भी नहीं है
असमं – उसे निर्वाण के समान और कुछ भी नहीं है
अप्पटिसमं – उस निर्वाण की तुलना किसी भी चीज से नहीं कर सकते हैं
जेट्ठं – जो सभी गुणों में ज्येष्ठ है
सेट्ठं – जो सभी गुणों में श्रेष्ठ है

लेणं च ताणं अरणं अनंगणं – अकाचमेतं विमलन्ति वुच्चति
दीपो सुखं अप्पमाणं पतिट्ठा – अकिञ्चनं अप्पपञ्चन्ति वुत्तं
निब्बाणमेतं सुगतेन देसितं

सुगत तथागत भगवान बुद्ध निर्वाण के बारे में ऐसा बताये

लेणं – संसार में दुख भोगने वालों के लिये सुरक्षित स्थान वही है
ताणं – निर्वाण ही इन्सान का संसार दुख से बचाने का स्थान है
अरणं – जहाँ कोई तृष्णा मोह माया नहीं है
अनंगणं – जहाँ सूक्ष्म रूप से भी कोई क्लेश नहीं है
अकाचं – जहाँ कोई दोष नहीं
विमलं – जो अत्यंत निर्मल स्थान है
दीपं – ऐसा द्वीप जो संसार सागर में कभी नहीं डूबता
सुखं – अविद्या तृष्णा से मुक्त होने के कारण एकांततः सुख है
अप्पमाणं – जिसका कोई माप-तौल नहीं है
पतिट्ठा – वो स्थापित स्थान है, जो संसार सागर में कभी नहीं डूबता
अकिञ्चनं – जहाँ न राग है, न द्वेष। न मोह है, न मद-मान और ना कोई क्लेश
अप्पपञ्चं – उस निर्वाण के पीछे कभी कोई क्लेश नहीं आता

हमारे भगवान बुद्ध ने बोधिवृक्ष की छाया में बैठकर उत्तम ज्ञान से जिस निर्वाण को साक्षात किये है, उसे सभी देव-मानव को बताकर आर्य अष्टांगिक मार्ग के द्वारा साक्षात करवायें है और वे सभी सर्व दुखों से मुक्त हुये हैं। वही एकांत मुक्ति धाम निर्वाण है। उस परमोत्तम निर्वाण को हम सदा नमन है।