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यानिध भूतानि समागतानि  –  भुम्मानि वा यानि व अन्तलिक्खे ।
सब्बेव भूता सुमना भवन्तु  –  अथोपि सक्कच्च सुणन्तु भासितं ।।

जो कोई प्राणी यहाँ उपस्थित है / धरती पर या आकाश में
उन सबके कल्याण के लिए / हमारे इस कथन को भली प्रकार से सुनें ।

तस्मा हि भूता निसामेथ सब्बे  –  मेत्तं करोथ मानुसिया पजाय ।
दिवा च रत्तो च हरन्ति ये बलिं  –  तस्मा हि ने रक्खथ अप्पमत्ता ।।

इसलिए सभी प्राणी ध्यान से सुनें / सारे मनुष्य के प्रति मैत्री करे
जो दिन रात पूजा एवं पुण्य देते है / अप्रमादी होकर उनकी रक्षा करें ।

यं किञ्चि वित्तं इथ वा हुरं वा  –  सग्गेसु वा यं रतनं पणीतं ।
न नो समं अत्थि तथागतेन  –  इदम्पि बुद्धे रतनं पणीतं ।
एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

इस लोक या परलोक में / जो भी धन वस्तु है / अथवा स्वर्ग में जो कुछ भी उत्तम रत्न है / उनमें से कोई भी रत्न / तथागत के समान नहीं है / ये तथागत भगवान बुद्ध में उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

खयं विरागं अमतं पणीतं  –  यदज्झगा सक्यमुनी समाहितो ।
न तेन धम्मेन समत्थि किञ्चि  –  इदम्पि धम्मे रतनं पणीतं ।
एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

क्लेश गन्दगी नष्ट करके / वैरागी अमृत निर्वाण से / परिपूर्ण पवित्र धर्म जो / तथागत ने एकाग्र होकर प्राप्त किया है / उस धर्म के समान और कुछ भी नहीं है / ये भी पवित्र धर्म में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

यं बुद्धसेट्ठो परिवण्णयी सुचिं  –  समाधिमानन्तरिकञ्ञमाहु ।
समाधिना तेन समो न विज्जति  –  इदम्पि धम्मे रतनं पणीतं ।
एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

परम श्रेष्ठ तथागत भगवान बुद्ध जी ने / जिसे उत्तम पवित्र बताएँ / यह वो समाधी है / जो कहीं बंधीत नहीं होती है / उस पवित्र समाधी के समान / दूसरा कुछ नहीं है / ये भी पवित्र धर्म में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो।

ये पुग्गला अट्ठ सतं पसत्था  –  चत्तारि एतानि युगानि होन्ति ।
ते दक्खिणेय्या सुगतस्स सावका  –  एतेसु दिन्नानि महप्फलानि ।
इदम्पि संघे  रतनं पणीतं  –  एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

जो तथागत बुद्ध जी ने / प्रशंसित किये आठ प्रकार के व्यक्ति हैं / उनके चार जोड़े होते हैं / वे तथागत भगवान सुगत जी के / शिष्य श्रावक गण / दक्षिणा देने के योग्य है / इन्हें दान देने का / महाफल मिलता है / ये भी पवित्र संघ में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

ये सुप्पयुत्ता मनसा दल्हेन  –  निक्कामिनो गोतमसासनम्हि ।
ते पतिपत्ता अमतं विगय्ह  –  लद्धा मुधा निब्बुतिं भुञ्जमाना ।
इदम्पि संघे रतनं पणीतं  –  एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

गौतम बुद्ध शासन में / जो तृष्णा रहित है / दृढ़ – मन से संलग्न है / सारे क्लेश-गंदगी को / त्याग कर निर्वाण की रास्ता पर / आने के बाद / जैसा चाहते हैं / वैसा निर्वाण में / सुख-शांति पाते हैं / ये भी पवित्र संघ में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

यथिन्दखीलो पठविंसितो सिया  –  चतुब्भि वातेही असम्पकम्पियो ।
तथूपमं सप्पुरिसं वदामि  –  यो अरसच्चानि अवेच्च पस्सति ।
इदम्पि संघे रतनं पणीतं  –  एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

जैसे पृथ्वी में गड़ी इन्द्रकील / चारों ओर से हवा चलने पर भी / कम्पित नहीं होती है / वैसे हीं सत्पुरूष को कहता हूँ / जो चार आर्य सत्य को दर्शन करता है / ये भी पवित्र संघ में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

ये अरियसच्चानि विभावयन्ति  –  गम्भीरपञ्ञेन सुदेसितानि ।
किञ्चापि ते होन्ति भुसप्पमत्ता  –  न ते भवं अट्ठमं आदियन्ति ।
इदम्पि संघे रतनं पणीतं  –  एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

गम्भीर प्रज्ञा वाले / तथागत भगवान बुद्ध जी / आर्य सत्य का उपदेश दिए हैं / जो कोई उस आर्य सत्य का / दर्शन करते हैं / वो आर्य श्रावक जिसके प्रमाद होने पर भी / आठवाँ भव जन्म नहीं होता है /  ये भी पवित्र संघ में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो

सहावस्स दस्सनसम्पदाय  –  तयस्सु धम्मा जहिता भवन्ति ।
सक्कायदिट्ठि विचिकिच्छितञ्च  –  सीलब्बतं वापि यदत्थि किञ्चि ।
चतूहपायेहि च विप्पमुत्तो  –  छचाभिठानानि अभब्बो कातुं ।
इदम्पि संघे रतनं पणीतं  –  एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

जो आर्य सत्यों का दर्शन करते है / उनके मन से तीन प्रकार के / संयोजन नष्ट होते हैं / सत्काय दृष्टि / शक एवं शील व्रत भी  / अन्य सारे बन्धन से भी / चार दुर्गति अपाय से भी / मुक्त हो जाते हैं / वे कभी भी  छः प्रकार के घोर पाप कर्मों का / आचरण नहीं करते हैं / ये भी पवित्र संघ में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

किञ्चापि सो कम्मं करोति पापकं  –  कायेन वाचा उद चेतसा वा ।
अभब्बो सो तस्स पटिच्छादाय  –  अभब्बता दिट्ठपदस्स वुत्ता ।
इदम्पि संघे रतनं पणीतं  –  एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

भले हीं वो शरीर मन वाणी से / पाप कर्म करता है / किंतु वो उसे कभी छिपा नहीं सकता है / आर्य धर्म में आए हुए / उत्तम व्यक्ति के लिए / ये धर्म का उत्तम नियम है/ ये भी पवित्र संघ में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

वनप्पगुम्बे यथा फुस्सितग्गे  –  गिम्हानमासे पठमस्मिं गिम्हे ।
तथूपमं धम्मवरं अदेसयि  –  निब्बाणगामिं परमं हिताय ।
इदम्पि बुद्धे रतनं पणीतं  –  एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

जैसे वसंत ऋतु में / वन और झाड़ियाँ / फल-फूलों से भर जाती है /  वैसे हीं भगवान बुद्ध ने / श्रेष्ठ धर्म का उपदेश दिया है / जो निर्वाण की ओर ले जाने वाला / तथा परम हितकारी है / ये तथागत भनवान बुद्ध में / उत्तम रत्न है /  इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

वरो वरञ्ञू वरदो वरारहो  –  अनुत्तरो धम्मवरं अदेसयि ।
इदम्पि बुद्धे रतनं पणीतं  –  एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

श्रेष्ट निर्वाण के दाता / श्रेष्ट धर्म के ज्ञाता / श्रेष्ट मार्ग के निर्देशक / लोकोत्तर तथागत भगवान बुद्ध नें / उत्तम धर्म का उपदेश दिया है /
ये तथागत भनवान बुद्ध में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

खीणं पुराणं नवं नत्थि सम्भवं  –  विरत्तचित्ता आयतिके भवस्मिं ।
ते खीणबीजा अविरूल्हीच्छन्दा  –  निब्बन्ति धीरा यथायं पदीपो ।
इदम्पि संघे रतनं पणीतं  –  एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु ।।

सारा पुराणा कर्म क्षय हो गया है / कोई नया कर्म भी उत्पन्न नहीं होता है / उनका चित्त भी पुनर्भव से विरक्त है / ये क्षिण बीज हो गया है / उनकी तृष्णा समाप्त हो गई है / वे प्रदीप के समान / निर्वाण को प्राप्त करते हैं / ये भी आर्य महासंघ में / उत्तम रत्न है / इस उत्तम सत्य वचन से / सबका कल्याण हो ।

यानिध भूतानि समागतानि  –  भुम्मानि वा यानि व अन्तलिक्खे ।
तथागतं देवमनुस्सपूजितं  –  बुद्धं नमस्साम सुवत्थि होतु ।।

जो कोई प्राणी यहाँ उपस्थित है / धरती पर या आकाश में / तथागत भगवान बुद्ध जी / उन देव मानव के पूजनीय हैं / उन तथागत बुद्ध जी को / हम नमन करते हैं / सबका कल्याण हो ।

यानिध भूतानि समागतानि  –  भुम्मानि वा यानि व अन्तलिक्खे ।
तथागतं देवमनुस्सपूजितं  –  धम्मं नमस्साम सुवत्थि होतु ।।

जो कोई प्राणी यहाँ उपस्थित है / धरती पर या आकाश में / तथागत भगवान बुद्ध जी / उन देव मानव के पूजनीय हैं / उन तथागत बुद्ध जी के / पवित्र धर्म को / हम नमन करते हैं / सबका कल्याण हो ।

यानिध भूतानि समागतानि  –  भुम्मानि वा यानि व अन्तलिक्खे ।
तथागतं देवमनुस्सपूजितं  –  संघं नमस्साम सुवत्थि होतु ।।

जो कोई प्राणी यहाँ उपस्थित है / धरती पर या आकाश में / तथागत भगवान बुद्ध जी / उन देव मानव के पूजनीय हैं / उन तथागत बुद्ध जी के / आर्य महासंघ को / हम नमन करते हैं / सबका कल्याण हो ।